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लेखनी कहानी -08-Jul-2022 यक्ष प्रश्न 1

आरोगो 


राजस्थान में "जीमण" का बड़ा शौक है । इतना कि महसूस होता है जैसे लोग जिंदा ही "जीमण" के लिए हैं । अगर कोई आदमी मर रहा हो और कोई उसे "जीमण" का निमंत्रण दे दे तो वह आदमी "जीमण" के लिए मौत से कुछ इस तरह प्रार्थना करता है

"हे मौत देवी । तेरी जय जयकार हो । तेरा यश तीनों लोको में दिन दूना और रात चौगुना बढता रहे । मुझे अपने आगोश में लेकर आपने मुझ पर जो अहसान किया है देवी कि मैं इस अहसान के बोझ से दबा जा रहा हूं । आपके साक्षात दर्शन पाकर मैं पृथ्वी के समस्त दुखों से मुक्त हो रहा हूं । मेरे लिए यह परम सौभाग्य की बात है । परन्तु दैवी , मैं "मिठाई" का दास हूं । मीठे के लिए मैंने क्या क्या नहीं किया , ये तुम क्या जानो ? मेरा पक्का उसूल है कि अगर कोई "जीमण" का निमंत्रण आ जाये तो मैं हर कष्ट सहकर भी उसे निभाता अवश्य हूं । मैं वीर प्रसूता मरू भूमि का पुत्र हूं , इसलिए मैं अपनी मां की कोख को लजाऊंगा नहीं । मैंने "जीमण" में एक से बढकर एक कीर्तिमान बनाए हैं । आज जब "जीमण" का अंतिम अवसर हाथ आया है तो इस अवसर को मैं हात से जाने नहीं देना चाहता हूं । मैं इस "जीमण" से अब तक के समस्त रिकॉर्ड ध्वस्त करना चाहता हूं । इसलिए कर बद्ध प्रार्थना है देवी कि मुझे इस अंतिम "जीमण" में भाग लेने दें । "जीमण" के पश्चात मैं स्वयं आपके द्वार पर उपस्थित हो जाऊंगा । मैं "जीमण" से आपके लिए भी कुछ बढिया सी मिठाई लेकर आ जाऊंगा । जीमण भक्त पर इतनी दया तो कीजिए देवी" ।
इतनी मार्मिक प्रार्थना अगर कोई करेगा तो मौत देवी कैसे ना मानेंगी ? ऐसे में तो कोई भी आदमी मौत से पीछा छुड़ाकर "जीमण" में चला जायेगा । तो ऐसी "जीमण प्रेमी" धरा से अनेक "पेटूराम" पैदा हुए जिन्होंने अपने प्रदेश का नाम पेरे देश में "जीमण कला" में रोशन किया है । जीमण के लिए यहां पर निम्न दोहा बहुत प्रसिद्ध है । 

चावल बूरा कोस दो कोसी , पूड़ी पत्ता बारह ।
जो सुण पाऊं मालपुआ तो दौड़ूं कोस अठारह ।।

कहने का मतलब यह है कि "जीमण" में जाने के लिए पैदल पैदल ही कितनी दूरी तक जाया जा सकता है ? सोचकर देखिए ? कितनी दूरी तक पैदल जाया जाये, यह जीमण की गुणवत्ता पर निर्भर करता है । जीमण में यदि केवल चावल बूरा ही मिलना है तो एक दो कोस अर्थात छः सात किलोमीटर तक पैदल जाया जा सकता है । यदि लड्डू और पूड़ी मिलने वाला हो तो बारह कोस यानि 36 किलोमीटर तक पैदल जा सकते हैं । और यदि जीमण में खीर और मालपुआ मिलें तो उनके लिए 18 कोस यानि 54 किलोमीटर तक दौड़ लगाने को तैयार हैं जीमणभक्त । 

तो , राजस्थान में जीमण का इतना क्रेज है । पहले जीमण "पंगत" में बैठकर किया जाता था । पंगत मतलब जमीन पर दरी बिछाकर सब लोग एक साथ जीमण के लिए बैठ जाते थे और परोसगारी करने वाले लोग अलग अलग सामान जैसे लड्डू , पूरी, सब्जी , रायता, पानी वगैरह लेकर आते रहते थे । तब तक "बूफे" का प्रचलन नहीं था । पंगत में जब तक समस्त आइटम सबको नहीं आ जाते और यजमान सबको हाथ जोड़कर "जीमने" की प्रार्थना नहीं करता तब तक लोग "जीमण" प्रारंभ नहीं करते थे ।

जीमण की भी कुछ परंपराएं थीं , नियम कायदे थे जिनका यजमान और मेहमान दोनों को पालन करना होता था । पहला नियम तो यह था कि "झूठन" कोई नहीं छोड़ेगा । झूठन छोड़कर अन्न देवता का अपमान कोई नहीं करेगा । दूसरा नियम यह था कि "मनुहार" का सम्मान किया जायेगा । अर्थात यदि यजमान प्रेम से कुछ आइटम परोस रहा है तो उसके लिये मेहमान मना नहीं करेगा ।
तीसरा नियम यह था कि अगर किसी भी कारण से खाना कम पड़ जाता था तो पंगत में "पापड़" सर्व कर दिया जाता था । इसका मतलब था कि अब और खाना नहीं है बस यह पापड़ खाकर अपने अपने घर को पधारें । मेहमान उस पापड़ का सम्मान करते हुए बिना कुछ बोले पंगत से खड़े हो जाते थे और चुपचाप अपने घर चले जाते थे । इस पर कोई टीका टिप्पणी नहीं होती थी ।
और चौथा नियम यह था कि पानी पीने के लिए अपने साथ गिलास या लोटा लेकर आना होगा । बाद में उसे लड्डुओं से भरकर ले जाया जा सकता था ।
इस प्रकार "जीमण" के बड़े अच्छे नियम कायदे बने हुए थे । 

एक बार एक जीमण में कोई कॉन्वेंट स्कूल का पढ़ा लिखा "बंदा" आ गया था । उसने इससे पहले कभी जीमण में खाना नहीं खाया था । जीमण का यह सिद्धांत है कि पंगत में बैठे सभी लोगों की "पत्तल" में समस्त आइटम आने के बाद और जीमण शुरू करने से पहले यजमान सभी मेहमानों को हाथ जोड़कर "आरोगो सा " कहकर निवेदन करता कि अब सब लोग खाना शुरू करें । और फिर सब लोग जीमण करने लगते । "आरोगो सा" का मतलब है भोजन लीजिए ।

कॉन्वेंट स्कूल का पढ़ा लिखा व्यक्ति जिसका नाम "अंग्रेज सिंह" था राजस्थानी भाषा और परंपरा से परिचित नहीं था । उसने कभी "आरोगो सा" वाक्य सुना नहीं था इसलिए वह इससे अनभिज्ञ था । उसने सोचा कि "आरोगो" किसी मिठाई का नाम है । उसने अपनी पत्तल देखी लेकिन उसमें "आरोगो " नामक कोई अजनबी मिठाई नहीं दिखाई दी । उसने अपने दोनों पड़ोसियों की पत्तल देखी कि उनके पास वह "आरोगो" नामक मिठाई आई है या नहीं । पर उनकी पत्तल में भी वही आइटम थे जो उसकी पत्तल में थे । इसका मतलब यह हुआ कि पड़ोसी के पास भी अभी तक नहीं आई थी वह "आरोगो" नामक मिठाई।  उसने सोचा कि "आरोगो" मिठाई बाद में आ आयेगी । औरों की देखा देखी उसने जीमण शुरू कर दिया ।

काफी देर के बाद भी जब "आरोगो " मिठाई नहीं आई तो उसने अपने अड़ोसी पड़ोसी से पूछा कि उनके पास आरोगो नामक मिठाई आ गई है क्या ? जीमण के समय कुछ लोग बोलते नहीं हैं और हाथ, गर्दन या किसी अन्य इशारे से जवाब दे देते हैं । उसके दोनों पड़ोसियों ने इशारे से कह दिया कि आ गई । अब तो अंग्रेज सिंह की आत्मा कुलबुला उठी । यदि कोई आइटम सबको नहीं मिले तो कोई बात नहीं । मगर यदि कोई आइटम दोनों पड़ोसियों को तो मिल जाये और हमें नहीं मिले , यह सहन करने योग्य नहीं है । यह घोर अपमान है जिसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है ।
"अंग्रेज सिंह" भी इस अपमान को कैसे बर्दाश्त करता ? एक तो मिठाई का नाम ही बड़ा अटपटा सा था "आरोगो" । उस पर उसे अभी तक भी नहीं परोसा गया ? और केवल उसे ही नहीं परोसा है बाकी सबको तो परोस दिया था । बस, इसकी "फांस" दिल में चुभ रही थी । उसने परोसगारी करने वाले आदमी को बुलाया

और परोसगारी करने वाले व्यक्ति से "आरोगो " नामक मिठाई की मांग कर दी । परोसगारी करने वाला समझ गया कि यह कोई "अनाड़ी" आदमी है जिसे "आरोगो" का मतलब पता नहीं है । इसलिए उसने टालने के इरादे से इशारा कर के कह दिया कि अभी लाता हूं । इससे अंग्रेज सिंह मन ही मन खुश हो गया और सोचने लगा कि बस अब "आरोगो" मिठाई आने ही वाली है ।


परोसगारी करने वाले आदमी ने यजमान को कहा कि एक आदमी "आरोगो " मांग रहा है । यजमान ने इसे अनसुना कर दिया । परोसगारी करने वाला आदमी फिर परोसने गया तो अंग्रेज सिंह ने फिर कहा "आरोगो लाओ " । परोसगारी करने वाले ने फिर यजमान को कहा कि वह आरोगो मांग रहा है । इस बार यजमान झल्ला गया और उसने इधर उधर देखकर एक छोटी लोढी "सिल पर चटनी बनाने का पत्थर का गोल मटोल औजार" उठाकर उसे दे दिया और कहा कि यह ले "आरोगो " और जाकर परोस दे उसको । 

इस प्रकार परोसगारी करने वाला आदमी उस लोढी को लेकर अंग्रेज सिंह के पास आया और अंग्रेज सिंह को कहा " यह लीजिए आरोगो " । अंग्रेज सिंह बड़ा खुश हुआ कि चलो आखिरकार आ ही गया "आरोगो " । उसने उसे हाथ से तोड़ने की बहुत कोशिश की मगर वह तो पत्थर की लोढी था , कैसे टूटता ? फिर उसने उसे दांतो से तोड़ने की कोशिश की मगर नहीं टूटा । एक तो इतनी देरी के बाद "आरोगो" हाथ आया था , अब वह टूट ही नहीं रहा है साला । अंग्रेज सिंह को बहुत तेज गुस्सा आ गया ।  गुस्से में उसने उस पत्थर की लोढी को सामने दीवार पर जोर से दे मारा । 

पत्थर की लोढी तेज गति से दीवार से जा टकराई और पड़ोसी की खोपड़ी पर "भटाक" से पड़ी । पड़ोसी का सिर फूट गया था । इस कारण वह जोर से चीखा " अरे , फूट गया रे , फूट गया रे" । और वह सिर पर हाथ रखकर रोने लगा । 

अंग्रेज सिंह ने आश्चर्य चकित हो गया और मन ही मन सोचने लगा कि अपनी तो तकदीर ही खराब है । वह जोर से बोला " साला आरोगो बड़ा नालायक निकला । मेरे पास तो टूटा नहीं और वहां जाकर फटाक से टूट गया , हरामी कहीं का । मेरे पास नहीं टूटा तो कोई बात नहीं ,  तुम्हारे पास तो टूटा कम से कम । अब ऐसा करो , थोड़ा मुझे भी दे देना । मैं भी टेस्ट कर लगा किगो" मिठा आई कैसी होती है ‌?

उसकी इस बात पर सब लोग जोर से हंस पड़े तब।  सरे पड़ोसी ने कहा कि "आरोगो " कोई मिठाई विठाई नहीं होती है । यह तो जीमण प्रारंभ करने की प्रार्थना है । तब अंग्रेज सिंह को समझ आया कि जीमण क्या होता है और "आरोगो " क्या है ? 


हरिशंकर गोयल "हरि"


27.12.20

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8 Comments

दशला माथुर

20-Sep-2022 12:54 PM

Bahut achhi rachana

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shweta soni

20-Sep-2022 12:26 AM

Behtarin rachana

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Gunjan Kamal

12-Jul-2022 12:16 AM

शानदार

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